माँ कब तक कपटी कहलाओगी
निश्छल चेतना से छली जाओगी,
फिर नए अवतार दुहराव ,
गदाधर , धनुर्धर को
लाओ
तुम ही तो सीता बनकर आयी
सरस्वती सी आँखे छलकायी !
माँ कब तक भू-पर आओगी ,
तेरे बिना है जग
सुनशान ,
कोटि ,कैकेयी मान रही सुख
शान ,
नभ-चर की छोड़ बरदान ,
भू -लोक को दे पहचान
भटक फिर रहा हर एक संतान !
दानवी प्रवृति कर रहा
गुणगान ,
अन्तः शक्ति
हो गया निस्च्काम ,
लक्ष्मी पा रही है
सम्मान
कलह प्रपंच से है
अनजान !
माँ आ अब तो गले लगा
हर प्राणी तेरी
ही संतान ,
मांग रहा अरसों
से बरदान !
संजय कुमार
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