दूर नहीँ पुरुषार्थ का लक्ष्य पाना ,
अब अपना व्यक्तित्व को पहचाना ,
विषमताओँ से टकराने वाला
कठिनाइयोँ से जुझने वाला
विकट परिस्थिति से संघर्ष तुम्हारा ,
ये ही लक्ष्य को भेदने वाला ।
संघर्ष के बिना आर-पार नहीँ ,
असुविधाओँ के बिना मझधार नहीँ ,
मनीषियोँ ने माना है ---
दुर्गम पथ मिटाना है ---
लक्ष्य सहनशील का निशाना है ।
सुख , शांति को परित्याग कर
गांधी , राम जैसे इंसान बन ,
दुराचारी तुम्हेँ रोकेगा ---
तुम्हारा लक्ष्य उसे तोड़ेगा ,
हिम-शिखर पिघल जायेगा ,
दूर देशी ललकारेगा ,
आसीन संवारे चक्रव्यूह रचायेगा ,
तुम ! फिर भी हार न पायेगा ।
प्रवल इच्छा शक्ति से बढ़ते रहना ,
अघर्मी को पीछे ही रखना ,
दूर नहीँ पुरुषार्थ का लक्ष्य पाना ।
संजय कुमार अविनाश
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