सामरिक शक्ति बढ़ा रहे हो , खून की रेत बहा रहे हो ।
वह निर्जीव का मोल क्या कारगिल जैसा युध्द दिया ।
कितनी बहनेँ विधवा हुयी कितनी माँ पुत्रवत त्यागी गाते जाओ बजाते जाओ
हर जुल्म की सितम ढ़ाते जाओ , विरान पड़ेगी जन्मदात्री पाकिस्तान हो या
हिन्दुस्तान ।
कल तक माँ की एक ही आँचल आज जीवन को बना रहे हो चंचल ।
भौतिकता अपनोँ से दूर करेगी दुश्मन तुम्हे अपनायेगी , परख पास की छाया
को समझ अपनी परछाया को ।
हर देश तुम्हेँ रुलायेगी अपनी ही हँसायेगी ।
याद कर उस कुर्बानी को पाकिस्तान न था हिन्दुसतान को , लोलुपता को गढ़ रहे
हो , खून की रेत बहा रहे हो ।
संजय कुमार अविनाश
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