नफरत की लकीर से टेढ़ी मेढ़ी बांध मत बना ,
जो एक तिली से ढ़हता रहा ।
उस जालिम कदमोँ की तनख्वाह क्या ,
जो गरीबोँ को
कुचलता रहा ।
मर मर कर सपना संजोया ,
एक बदनसीब का चेहरा
छुपा मिला ।
भौतिकता के दुनियां से निकल यारोँ ,
चाँद से भी
खूबसूरत दिखोगे .
आंखे आसमा की ओर मत निहार ,
गरीबोँ के कदमोँ मेँ
गिरगिराते फिरोगे ।
नफरत की लकीर से ऊँची ऊँची मंजिल मत बना ,
जो एक आंधी से
टुटता रहा ।
मरहम की सागर से मत छुपा
गरीबोँ के आंसुओँ से डुबता रहा ।
नफरत की लकीर से खुद को मत सजा ,
जो एक निश्चल कपटी भी
दुत्तकारता रहा ।
संजय कुमार अविनाश
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