"सोचता हूँ मैं कब से अंदर से,
आदमी कब ज़ुदा है बन्दर से,
कभी दहाड़, तो क़राह कभी,
वो देखो उठ रही है बस्तर से,
कौन समझाए नामुरादों को,
सिर्फ़ होते हैं क़त्ल खंजर से,
कोई छोटा-बड़ा नहीं होता,
पूछ लो पोरसोसिकंदर से,
हवा के रुख़ के साथ कैसे चलें,
पूछ लो तुम ये किसी लीडर से,
दोस्तों! ग़रज़ सीखने की जिसे,
सीखता है वो ख़ुद से बेहतर से,
चिराग़ जो करे रौशन, मौला,
बुझेगा क्या, किसी बवंडर से,
बेवफ़ा से वफ़ा नहीं मिलती,
कहाँ फ़सल मिले है बंजर से,
चलेगा साथ किसी के वो क्या,
जिसे धोखा मिला हो रहबर से,
कभी पल के हिसाब, इश्क़ कभी,
कभी जहान मिले शायर से,
भाईचारा औ मुहब्बत क्या है,
पूछ ले सूफ़ी 'राज़' के घर से।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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