"बन के मै आफ़ताब, जाउँगा,
लेने मैं माहताब, जाउँगा,
सुना है फूल सी नाज़ुक़ है वो,
ले के मैं इक गुलाब, जाउँगा,
तारीफ़-ए-हुस्न नर्म लफ़्ज़ों में,
ले के शायर का ख़्वाब, जाउँगा,
नशा-नशा-नशा-नशा है वो,
पीने उसकी शराब, जाउँगा,
दौलतेइश्क़ से लबरेज़ हूँ मैं,
बाँटता मैं नवाब, जाउँगा,
मैं तो मुफ़लिस, रईस के दर पे,
करने,दिल का हिसाब, जाउँगा,
जब तलक़ वो मुझे हासिल ना हो,
करके ख़ाना ख़राब, जाउँगा,
मैं तो माशूक़ के घर हज़ करने,
लेने ज़मज़म की आब, जाउँगा,
जो लोग इश्क़ को रुसवा करते,
देने उनको जवाब, जाउँगा,
जब भी जाउँगा 'राज़' दुनिया से,
लिख के सूफ़ी क़िताब, जाउँगा।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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