"चंद काँटों को ख़ून दे के गुलाब मिलता है,
मुताबिक़ेसवाल सब को जवाब मिलता है,
ख़ुदा के फ़ैसले कितने अजीब हैं, यारों !
हर एक शै को किए का हिसाब मिलता है,
न जाने कैसा होगा, दोस्त! वो ख़ाता-ए-ख़ुदा,
जहाँ सब के भले-बुरे का, हिसाब मिलता है,
अब की दुनिया, लगे है दौरेक़यामत! मुझको,
सबको जो दे, उसी को ख़ाना ख़राब मिलता है,
जब करो अच्छा किसी के वास्ते तो बदले में,
सरफ़िरा और नीमपागल ख़िताब मिलता है,
नसों में ख़ून की जगह दिखे पानी बहता,
अब जहाँ में कहाँ पे, इन्क़लाब मिलता है,
किसी भूखे को दोनों वक़्त की रोटी जो दे,
बैठे-बैठे उसे हज का सवाब मिलता है,
मेरी फ़ितरत है, मुफ़लिसों से मुहब्बत करना,
बड़ी मुश्क़िल से 'राज़' सूफ़ी नवाब मिलता है।।"
(लगातार)
संजय कुमार शर्मा "राज़"
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