"पिता बन कर सृष्टि रचने शुक्र अंडाधार दूँ,
मातृ बन कर नौ महीने गर्भ में मैं प्यार दूँ,
बहन बन कर भाईयों के प्राण में बस जाऊँ मैं,
बन के भाई मैं, बहन का प्रेम हिय से पाऊँ मैं,
सुत बनूँ सद्सत्य मैं, माता-पिता को तार दूँ,
बन सुता मैं सहृद्शक्ति, सृष्टि को संसार दूँ,
अग्रजों की भाँति मैं नेतृत्व को स्वीकार लूँ,
और सेवक अनुज बन कर जगद्सद्परिवार दूँ,
अग्रजा मैं मातृ सम बन, ध्यान सब का मैं रखूँ,
और अनुजा बन सभी के स्नेह का मधुरस चखूँ,
हे! परम अज्ञात, यदि तू है तो मेरी नियति लिख...!"
(लगातार)
संजय कुमार शर्मा
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