"ग़ज़ल सुबहा का नशा, रात की शराब, सुनो,
ग़ज़ल है 'राज़' की सूफ़ी कोई क़िताब, सुनो,
मिले है हर सवाल का जवाब हर्फ़ों में,
ग़ज़ल हैं हर सवाल का सही जवाब, सुनो,
कभी नफ़रत औ मुहब्बत का ये ताना-बाना,
कभी नेक़ी औ बदी का, ग़ज़ल हिसाब, सुनो,
ग़ज़ल में वस्ल की बातें औ हिज़्र के किस्से,
ग़ज़ल में साँस लेता महज़बीं शबाब, सुनो,
आब काबे की, ग़ज़ल गंगोजमन का पानी,
ग़ज़ल में आदमी की ज़िन्दग़ी की आब, सुनो,
मिले मुफ़लिस औ बड़े मज़लूम, वक़्त के मारे,
मिलें ग़ज़ल में कहीं "राज़" से नवाब, सुनो।।"
(लगातार)
संजय कुमार शर्मा "राज़"
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