Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

"ज़मीं पे आफ़ताब...

 

 

 

 

 

 

"ज़मीं पे आफ़ताब देखा है,
उसके रुख़ पे निक़ाब देखा है,

 

 

तेरे नशे से वो क़मतर निकला,
मैनें पी कर शराब, देखा है,

 

 

नक़ाब, रुख़ से ज़रा हटते ही,
मैंने इक़ माहताब देखा है,

 

 

लगाता आग आबोदिल में मिरे,
मैंने जलता शबाब देखा है,

 

 

तू इक सवाल है, कहीं जिसका,
नहीं मिलता जवाब, देखा है,

 

 

कहाँ मिलेगी, कब मिलेगी बता,
अलसुबह मैंने ख़्वाब देखा है,

 

 

इश्क़ है खेल, 'राज़' क़िस्मत का,
करके ख़ाना ख़राब, देखा है।।"

 

 

 

 

 

संजय कुमार शर्मा 'राज़'

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ