"जो ख़ुद हो मैक़दा, उसको शराब क्या देता,
गुल-ए-गुलज़ार को कोई गुलाब क्या देता,
देककर जिसको,जिसके ख़्वाब से ज़िन्दा मैं हूँ,
उसी की आँख को, मैं अपने ख़्वाब क्या देता,
जिसकी हर इक़ अदा, मासूम सा सवाल लगे,
ऐसे मासूम सवालों के जवाब क्या देता,
जो ख़ुद हो ज़न्नत, जिसकी हर इक़ अदा हलावत हो,
आब-ए-ज़मज़म को मैं दरिया की आब क्या देता,
दौलतेहुस्न से भरा हो ख़ज़ाना जिसका,
उसे तोहफ़े में,जो हो शाहेनवाब,क्या देता,
जिसका हर इक़ सफ़ा लबरेज़ हो मुहब्बत से,
"राज़" उसको मुहब्बत की क़िताब क्या देता।।"
संजय कुमार शर्मा "राज़"
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