Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कभी हम भी मैक़दे पर जाते

 

 

 

kabhi hum

 


"कभी हम भी मैक़दे पर जाते,
पीने हम साक़ी की नज़र जाते,

 

 

बड़ा जादू शराबख़ाने का,
जहाँ पीने को सब, ज़हर जाते,

 

 

जो पास होता मैक़दे का पता,
हम आँख मूँद कर उधर जाते,

 

 

इस जहाँ में जो नेक़ी करते हम,
आने-जाने से हम उबर जाते,

 

 

जो उनके दिल में शराफ़त होती,
क्यूँ वो शैतानों के शहर जाते,

 

 

जो होता एहतराम क़ाबे का,
दिन मुश्क़िल के भी गुज़र जाते,

 

 

लेते तालीम, सीखते जो सबक,
हम भी आसानी से सुधर जाते,

 

 

हर तरफ़ दंगे-लूट-आगजनी,
इस शहर में भला किधर जाते,

 

 

चलो सफ़र पे उसी रस्ते पर,
जिस रस्ते पे रहगुज़र जाते,

 

 

जो कोई राह दिखे मंज़िल तक,
'राज़' हम भी उसी डगर जाते।।"

 

 

 

संजय कुमार शर्मा 'राज़'

 

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