"ख़्वाब तो ख़्वाब हैं, वो टूटेंगे,
ज़ीस्त के ख़्वाब दिखाने वाले,
वो देखो! पर कटा के बैठे हैं,
तारे वो तोड़ के लाने वाले,
नहीं सौदा, ये क़िस्सा रूहानी,
इश्क़ का दाम लगाने वाले,
जान के भी, के इश्क़ वाले जीत जाएँगे,
मिले हैं इश्क़ में क्यों, पेंच लगाने वाले,
देखो! इक रोज़ तुम्हें, मेरी ही होना होगा,
देख के मुझको, मुझ से नज़रें चुराने वाले,
पलक झुकाने के माने ही मुहब्बत है, सुन!
देख के मुझको, पलक अपनी झुकाने वाले,
नज़र मिली के दिल हलाक़ हुआ,
क़ातिल थे तीर, निशाने वाले,
मुझे भुलाने में मुश्क़िल होगी,
सोच ले! दिल में बसाने वाले,
कौन जाने था बेवफ़ा होंगे,
सबक वफ़ा का पढ़ाने वाले,
बग़ैर इश्क़ ज़िन्दग़ी बदमज़ा,
इश्क़ से बैर निभाने वाले,
'राज़'! तनहा गुज़ारना होगा,
दो दिलों को, ओ! मिलाने वाले।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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