"क्या लिखूँ, क्या पढूँ, क्या गाऊँ,
जब दिखे जल रहा देश मेरा,
भांडों सम लगता वेश मेरा,
जन को जन से जब नहीं प्यार,
कट रहे वृक्ष, थोथा श्रृंगार,
अनजान दिशा, बह रही धार,
अब स्वप्न, वृष्टि रिमझिम फुहार,
होता दिखता, मानव - व्यापार,
कैसा अव्यवस्थित, प्रजातंत्र,
व्यतिकृत मत लेना मूलमंत्र,
जल राख बने सारे अंगार,
क्या, क्लीव। प्रिया को हरषाऊँ,
क्या लिखूँ, क्या पढूँ, क्या गाऊँ।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY