"मैं तो सूफ़ी क़िताब लिखता हूँ,
आब को मैं शराब लिखता हूँ,
सवाल-ए-ज़ीस्त चाहे जैसा हो,
सही-सही जवाब लिखता हूँ,
नए-पुराने ज़ख़्म गिन-गिन के,
मैं तो सबका हिसाब लिखता हूँ,
बदन को मैं चमन, रुख़ को बिजली,
लबों को मैं गुलाब लिखता हूँ,
उसकी यादों से मिले मै को मैं,
पी के,बन के नवाब लिखता हूँ,
नशा-नशा-नशा-नशा है वो,
मैं तो पी के शराब लिखता हूँ,
जलाता है शबाब उसका तो,
हुस्न को आफ़ताब लिखता हूँ,
चाँद भी देख के शरमाए जिसे,
ज़मालेयार को मैं, माहेताब लिखता हूँ,
कभी गंगा, कभी जमुना, कभी रावी-सतलज,
कभी मैं यार को, बहता चनाब लिखता हूँ,
सुबहा लिखता हूँ, शाम लिखता हूँ,
कर के खाना ख़राब लिखता हूँ,
नज़र किसी की ना लग जाए कहीं,
ले के रुख़ पर निक़ाब लिखता हूँ,
मेरी नज़र में मुहब्बत है ख़ुदा,
मैं अपना इन्तख़ाब लिखता हूँ,
के' उसकी याद है नमाज़ मेरी,
मैं तो हज़ का सवाब लिखता हूँ,
हुस्न पे जब भी उसके, लिखना हो,
कर के दिल को बेताब लिखता हूँ,
तिरे बारे में जब भी लिखता हूँ,
मैं तो बस लाज़वाब लिखता हूँ,
तेरे आने औ चले जाने को, 'राज़'
मैं अल सुबह का ख़्वाब लिखता हूँ।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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