"मेरा हमसाया, हमबदन मेरा हमनाम है वो,
के' मेरे वास्ते, क़ाबे का एहतराम है वो,
बग़ैर उसके ज़िन्दग़ी लगती बेमानी,
मेरी ख़लिश, मेरा पैमाना, मेरा जाम है वो,
मिरा लहू है, सियाही,मेरा मज़मूनेख़त,
वो इबादत है अक़ीदत, मेरा सलाम है वो,
नमाज़ पाँच वक़्त का, मिरा मंदिर-मस्ज़िद,
मिरा आगाज़, मेरा आख़िरी अंजाम है वो,
वो मेरा आफ़ताब, माहताब, आठ पहर,
वो मेरी शब है, मेरा बाम, मेरी शाम है वो,
वो मेरा 'राज़' सूफ़ी सबकी मदद करता है,
है बड़ा नामवाला इसलिए बदनाम है वो।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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