Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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संगेमरमर बदन वो.

 

 

sangemarmar

 


"संगेमरमर बदन, वो लाजवाब, देखो तो,
हूर है या किसी शायर का ख़्वाब, देखो तो,

 

अब तलक़ सुर्ख़ होगा, ख़ूनेज़िगर था उसमें,
दबा क़िताब में, उसका गुलाब, देखो तो,

 

हुस्न वाला मेरा, रहता है इस ज़मीं पे मगर,
हूर-ए-ज़न्नत का मिला है ख़िताब, देखो तो,

 

बदन को आग से भर देता है,
यार का आफ़ताब, देखो तो,

 

कभी पागल, कभी ठंडा करता,
हुस्न या माहताब, देखो तो,

 

चांद ग़र्दूँ में इक, ज़मीं पर इक,
वो मेरा इन्तख़ाब, देखो तो,

 

लगे है, बादलों में चाँद छिपा,
उसके रुख़ पे नक़ाब, देखो तो,

 

वफ़ा-ज़फ़ा के मायने क्या हैं, इश्क़ में
कर के तुम ख़ाना ख़राब, देखो तो,

 

क्या कहूँ, राज़ी वालिदैन नहीं,
उसका हाज़िर जवाब, देखो तो,

 

मिसाल 'राज़' नहीं यार की दुनिया में मेरे,
पूरे बंजर में फ़क़त वो शादाब, देखो तो।।"

 

 

 

 

संजय कुमार शर्मा 'राज़'

 

 

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