Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

संजय कुमार शर्मा

 

  • jatan

    "करुँ क्या जतन, वास्ते वस्ल के मैं,
    मैं कागज़ की क़श्ती, वो गहेरा समंदर,

     

    डुबाने की चाहत, समाने की हसरत,
    कभी उसके भीतर, कभी मेरे अंदर ।।"

     

  • jaanteho

"जानते हो के मैं बारिश में भीगता क्यों हूँ,
के' मेरे अश्क़, ज़माने को नज़र मत आएँ।"

 

  • sharab

"लोग पी लेते हैं, इंसान का लहू, बेधड़क,
मैंने पी ली कभी शराब तो खता क्या की।"

 

  • mukaddar

"तू लाया है यहाँ जो माँगकर, वो ही फ़क़त गुज़रे,
के मेहनत से कभी किसी का मुक़द्दर नहीं बदला।"

 

  • poochhajo

"पूछा जो उसने: इश्क़ है कितना?

कहा मैंने,

मुझमें तू, तुझमें मै जितना ।।"

 

  • insan

 

"लोग पी लेते हैं, इंसान का लहू, बेधड़क,
मैंने पी ली कभी शराब तो खता क्या की।"

 

  • samundar

    "ऐ समन्दर! सामने मेरे, मचलना छोड़ दे,
    मैं बरसना छोड़ दूँ तो तू कहाँ रह जाएगा।।"

     

    pitahun

    "हाँ मैं हूँ रिंद "राज़" सुबहो शाम पीता हूँ,
    लहू पीने से तो अच्छा है जाम पीता हूँ।"

     

    shatranj

    "ये श़तरंज नहीं "राज़" के प्यादे से मात हो,
    सियासत है प्यारे तो सियासत की बात हो।"

     

    wazan

    "मेरे कुल वज़न से मेरे दिल का वज़न घटा के पढ़ो,
    "राज़" दिल अपना बहुत पहले मैं लुटा चुका हूँ कहीं।"

     

     

    • shamma
  • "जलाए रखना कोई श़म्मा, सनम किनारे पर,
    मेरी क़श्ती खुद-ब-खुद उस तक चली आएगी।"

     

     

    lagegiboli

    "लगेगी बोली, होंगे नीलाम, तेरी दुनिया में,
    या ख़ुदा! तूने यहाँ आदमी पैदा क्यों किए?"

     

    jahar

    "बाहर के ज़हर से बड़ा महफ़ूज़ रहता हूँ,
    आस्तीन में कुछ साँप मैंने पाल रक्खे हैं।"

     

  • "यहाँ के क़ायदे ख़ुद 'राज़', मैक़द तय किया करते,
    के ये है मैक़दा, यारों! न मंदिर है, न मस्ज़िद है।।"

     

    dekhachand

    "जो देखा चाँद पर एक स्याह सा परदा लगाती है,
    फ़क़त एक बार उनको देख, आँखें फोड़ लीं मैंने।"

     

    inseachche

    "इन से अच्छे तो जंगलों में शेर थे, मिरे मौला,
    कम-से-कम वो हमें ख़रीद के खाते तो ना थे।।"

     

  • " है वस्ल की चाहत समंदर से, अगर दरिया तुझे,
    तो उतर कर तख़्त से, चलना ज़मीं पर सीख ले।"

     

  • "है मिलन की चाह सागर से यदि नदिया तुम्हें,
    तो पहाड़ों से उतर कर समतलों पर तुम बहो।"

 

  • mohabbat

"मुहब्बत"

"अजब सा फ़लसफ़ा है 'राज़' दुनिया में मुहब्बत का,
मिले जो ये तो मैदाँ में, न तुम हारे न हम हारे,
अगर हासिल न हो ये 'राज़' ,तो ये खेल रूहानी,
मुहब्बत की लड़ाई में, न तुम जीते न हम जीते।।"

 

 

 

 

  • haiwasl

 

 

है वस्ल की चाहत समंदर से, अगर दरिया तुझे,
तो उतर कर तख़्त से, चलना ज़मीं पर सीख ले।

 

  • silsila
    "जिससे शिक़वे, शिका़यत और कोई ग़िला रखता,
    "राज़" उससे ही मुहब्बत का सिलसिला रखता।।"

 

 

 

1.
"आशिक़"
२९॰०९॰२०११

"जो लोग ग़मज़दा हों, आशिक़ हो नहीं सकते,
आशिक़ दिलों मे "राज़" हरदम दीप जलते हैं।"

संजय "राज़"
2.
"वज़ू"
२७॰०९॰२०११

"बड़ी सुबहा से मेरे क़दम चले मैख़ाने को,
वज़ू की ख़ातिर मेरी ज़रूरत है पैमाने को।"

संजय "राज़"
3.
“मैक़शी”
२५॰०९॰२०११

" दस्तूर है, साक़ी है, मैक़शी है, वक़्त है,
और शर्त है के "राज़" पी बोतल बिना खोले...!

संजय "राज़"
4.
"श़म्मा"
२४॰०९॰२०११

"जलाए रखना कोई श़म्मा, सनम किनारे पर,
मेरी क़श्ती खुद-ब-खुद उस तक चली आएगी।"

संजय "राज़"
5.
"पुरानी शराब"
२३॰०९॰२०११

"कोई पुरानी शराब है वो "राज़" यार मेरा,
बिना पिये भी कई बोतल का नश़ा देता है।"

संजय "राज़"
6.
"आदमी"
२२॰०९॰२०११

"आदमी, आदमी का खून पी रहा है यहाँ,
आदमी "राज़" अपने होने पे शरमिन्दा हूँ।"

संजय "राज़"
7.
"ज़मीन"
२०॰०९॰२०११

"हर शख़्स मुझसे आब की उम्मीद ना करे,
मेरे बादल भी ज़मीन देख के बरसते हैं।"

संजय "राज़"
8.
"ज़हर"
१९॰०९॰२०११

"बाहर के ज़हर से बड़ा महफ़ूज़ रहता हूँ,
आस्तीन में कुछ साँप मैंने पाल रक्खे हैं।"

संजय "राज़"
9.
"च़राग़"
१८॰०९॰२०११

"लोगों ने हवाओं को सुपारी मेरी दी है,
मेरे च़राग़ उन्हीं हवाओं के दोस्त हैं।"

संजय "राज़"
10.
"असर"
१७॰०९॰२०११

"बड़ी सुबह से मेरे क़दम चले, मैख़ाने को,
असर के वास्ते जगाना जो है पैमाने को।"

 

 

 


संजय "राज़"

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ