"सोचता हूँ ये सिलसिला क्या है,
वफ़ा के बदले में मिला क्या है,
देखा जो, पैमाने में ज़हर तेरा,
कहा मैंने, मुझे पिला! क्या है,
'अच्छे दिन आएँगे', वो कहते हैं,
अब भी फटा है सब सिला क्या है,
ले के आग़ोश में, ख़ंज़र भोंका,
मारा अपने ने तो ग़िला क्या है,
लगा दो पूरी ताक़त, मिटाने में,
'राज़' सच्चाई का हिला क्या है।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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