"पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
अरे! जंग में जाता है तो, पूरा लश्क़र ले के चल,
और देश की शान तिरंगा अपने सर पर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
सुनो! राह में मतवाले आएँगे, कुछ ज़ेहादी भी,
वतन के कुछ दीवाने होंगे,होंगे कुछ उन्मादी भी,
क़फ़न बांध कर तू जाना, पीछे मत हटना मरते तक,
मंज़िल तक जो जाना हो तो तू भी ख़ंजर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
इक फ़ेहरिस्त बनानी होगी, कौन वतन के दीवाने,
शम्मा में जल जाने को, आमादा कितने परवाने,
देने को उनकी मिसाल, सबका हिसाब रखना होगा,
काग़ज़-कलम-दावात साथ में पूरा दफ़्तर ले के चल
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
लगी राह में भीड़ मुफ़लिसों और ज़ुरुरतमंदों की,
मदद हौसले से की जाती,नहीं ज़ुरुरत चंदों की,
छोड़ चोचले दौलतमंदों के, तू अपनी जुगत बना,
उनके सोने के ख़ातिर तू अपना बिस्तर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
अगर मर्द सरकार तेरी, बेजाक़ब्ज़ा हटवा दे तू,
सड़कों पर गड्ढे जितने, भैया। उनको पटवा दे तू,
वोट मांगते, बना भिखारी फिरता था गलियों में तू,
अब भीड़ भरी सड़कों पर तू बुलडोज़र-डम्पर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
बिकते अभिनेता-अभिनेत्री, नेता-अधिकारी ज़्यादातर,
काम कोई भी कर देते निर्लज्ज, थोथा पैसा पाकर,
जैसे रक़्क़ासा बिक़ती है, मेहफ़िल में गा-नाच यहाँ,
शर्त फ़क़त इतनी के कोई तगड़ा आफर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
सबसे ग़हरी यारी वो जो पी कर क़ायम की जाए,
सबसे अच्छा वह मनुष्य जो पूरी बोतल पी जाए,
अरे! गए वो दिन, संजय! जब न्याय सत्य को मिलता था,
कोई अटका काम बनाने, बोतल बम्पर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
'स्त्रीधन' कह या 'दहेज' की मेरी भी कुछ सुन ले तू,
बेटी अगर बिदा करनी है, तो भैया जी, गुन ले तू,
मुल्क़ आज भी समझ ना पाया, बेटी की इज़्ज़त करना,
एसी, बाइक, वाशिंग मशीन, एल डी, फ़्रिज़, कूलर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
सुना! देश में साफ़-सफ़ाई का कोई अभियान छिड़ा,
अब इस काम में व्यापारी क्या, देखो दिखता सदर भिड़ा,
महज़ औपचारिकता से क्या, साफ़ तेरा घर होता है?
करने नाटक, झाड़ू-दास्ताने, जंतर-मंतर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
कहूँ! यहाँ कूड़ा-करकट, नाली, पालीथिन कितने हैं,
गली -गली में अत्याचारी, भ्रष्टाचारी जितने हैं,
जड़ से पत्तों तक दीमक है और उपचार ज़ुरुरी है,
हाथ में झाड़ू नाकाफ़ी, तू साथ बवंडर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
कहर क़ुदरती हो या आतंकी कोई विस्फोट जहाँ,
और ढोंग सहृदयता का करना आवश्यक लगे वहाँ,
मज़लूमों की भीड़ मिलेगी, सोच-समझ ले तू प्यारे,
ख़ातिर अपनी जान बचाने, हेलीकाप्टर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल,
'राज़' अरे! राहग़ीरों में तो होंगे कुछ बूढ़े-बच्चे भी,
माता-बहिनें-महिलाएँ, होंगे कुछ तन के कच्चे भी,
बन कर उनकी लाठी-आँखें, पल-पल साथ चला-चल तू,
बड़ी हिफ़ाज़त से उन सबको, तू उनके घर ले के चल,
पल-पल विष पीना होगा, रग-रग शिवशंकर ले के चल।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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