"वो मिरे दुश्मन से मिल गया होगा,
वो गुल कहीं और खिल गया होगा,
लगता है दिल नहीं है सीने में,
घूमने कहीं दिल गया होगा,
क़ुहेसफ़ा में थी ताक़त कितनी,
उसके छूने से हिल गया होगा,
वहाँ का रास्ता बेहद मुश्क़िल,
यार का पैर छिल गया होगा,
वो ज़ख़्म जो फटे दिखे कल तक,
उन्हें वो 'राज़' सिल गया होगा।।"
संजय कुमार शर्मा 'राज़'
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