Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अर्जी

 

गुलमोहर किसी से कुछ नहीं कहता
वो देता है आँखों को आकर्षण ,मन को सुकून
गर्मी की तपिश से

सुख जाते है जब कंठ
तब ,मिट्टी के मटको से हो जाती है

दोस्ती इंसानो की
गॉवो की आबो हवा लाती थी सुखद नींद
और आम ,नीम ,पीपल के पेड़

बन जाते थे माँ का आँचल

अब अज्ञानी लोग काटने लगे अपने

स्वार्थ के लिए बेजुबान पेड़ो को
किसी ने रोका /शिकायत क्यों नहीं की

सुविधाओं के मतलबों के कारण

लगता है मानों

सब के मुह में मानो मूंग भरे हो

अब गुलमोहर ही दिख रहे है
जो प्रतिनिधित्व कर रहे है
बचे पेड़ो का
लगता हो जैसे

लगा रहे हो सुर्ख फूलों से
पेड़ो को बचाने

और नए लगाने की ऊपर वाले से अर्जी

 

 

 

संजय वर्मा "दृष्टि "

 

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