Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेटी

 

बेटी अब घुटने चलने लगी संभलती वो अब धीरे-धीरे
उठ खड़ी होकरचलने लगी डगमगाती अब वो धीरे-धीरे

 

कही गिर ना जाये डरता मन कहता है चलो जरा धीरे -धीरे
पहली बार छोड़ने गया स्कुल संग आंसू गिरे मोती से धीरे-धीरे

 

बिटियाँ बन गई अफसर सपने सच होने लगे मेरे धीरे-धीरे
बिटियाँ की शादी मे होती बिदाई पग चलने लगे मेरे धीरे-धीरे

 

पीछे मुड़कर बाबुल देखे बिछोह मन से आँखे कह रही धीरे-धीरे
बुढ़ा हो जाऊ टेक लकड़ी बिटियाँ से मिलने जाऊंगा धीरे-धीरे

 

बिटियाँ मे मेरी सांसे बसती बचपन की लोरी गाता अब मे धीरे-धीरे
संदेशा वो जब भेजती तब मेरी आँखों मे आंसू झरते धीरे-धीरे

 

 

संजय वर्मा "दृष्टी "

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