झोली झूलने की
बांधी थी बेटी के लिए
स्वेटर बुना ,टोपी बुनी
मोज़े हाथ -पैरो के बुने
सपने बुने चाँद सी बेटी के लिए
तमन्ना थी घर में बेटी आये ।
दीवारों पर टांगी
बेटियों की खुबसूरत सी तस्वीरे
धार्मिक ग्रन्थ पढ़े
नहीं खाया नारियल का बीज
अंधविश्वास था की इससे बेटा होगा
तमन्ना थी घर में बेटी आये ।
छोटी -छोटी गुदडिया /लारिया /फाल्के
बनाकर रखे मेरी माँ ने
आने वाले नन्हे मेहमान के लिए
इश्वर को पूजा, मन्नते मांगी
चढाव धीरे उतरी /चढ़ी
तमन्ना थी घर में बेटी आये ।
सपना देखा सुबह नींद खुली तो
तो पाया की बाहर हल्ला हो रहा
किसी दबे स्वर में बताया की
सामने वाली महिला की बिटियाँ को गर्भ
में मार दिया यानि कन्या भ्रूण हत्या
मेरी तरह उसकी भी
तमन्ना थी घर में बेटी आये ।
संजय वर्मा "दृष्टि "
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