बेटी बचाओ अभियान एक पुनीत अभियान है | जो की समाज की उस बुराइयों की और इशारा करता है जहाँ लोगबाग भ्रूण -हत्या करने की सोच विकसित करते है |वे लोग इस बात को गहराई से सोचे कुल को बडाने वाली ,रिश्तों के मजबूत बंधन को बांधनेवाली,बहन ,माता ,पत्नी आखिर किसी की भी बेटियाँ तो होती है | जन्म से पहले बेटी को मारने का पाप इंसान क्यों करने लगा है ,उसे कानून द्वारा कड़ी सजा मिलेगी यह डर होने पर भी भ्रूण -हत्या करने की जो मानसिकता विकसित हो रही है वो इंसान कि इंसानियत नहीं बल्कि शेतानियत को दर्शाता है | भ्रूण हत्याए करने से जीवन मे सारे पुण्य काम स्वत: समाप्त होजाते है | बेटियाँ तो ओंस सी कोमल होती है ,बेटियाँ हँसती तो मोती झरते है ,बेटियाँ विदाई होने पर रोतीं है तो हर इंसान की आखें रोतीं है |भावनाओ और ममत्व से जुड़ा होता है बेटियों का प्रेम |बेटियों के बिना त्यौहार भी सूने लगते है ,भाइयों कि कलाइयाँ भी सूनी होती है,श्रंगार रस कि कल्पनाये भी कोसो दूर रहती है ||सच भी तो है हमारे जीवन की साँस और आस होती है बेटिया | यदि जीवन मे सच्चा सुख कोई पाना चाहते है तो "बेटी बचाओ अभियान" का संकल्प लेवे ताकि बेटी के संग दोगुनी खुशिया हर घर मे हो सके |
बिदाई में भीगती है आँखे
बेटी हुई तब ख़ुशी से झरते आँसू
साँझ के पंछी की तरह लोट आते है आंसू
जब भ्रूण-हत्या हो तब फिर से गिरते आंसू ।
माँ किस -किस से करे गुहार
पीडाये मन की उभर के आई है
मुस्कराहट भी डरने लगी क्रूर लोगो से
कब लगेगा अंकुश ये माँ सोचती आई है ।
बिटियाँ आ सकेगी दुनिया में
बिछाए रखे थे माँ ने पलक -पाँवड़े ये सोच कर
रो -रो कर बताती रही आँखे दुनिया को
क्या दुनिया में बेटियों का जनना है दुष्कर।
अगर ऐसा ही है तो बेटियों के बिना
इन्सान दुनिया में महज पत्थर बन रह जायेगा
कोई नहीं होगा रिश्तों की दुनिया में
आँखों में बिन नमी के इन्सान किस से नेह पायेगा ।
अंगना सूने किस को ये पीर बताएँगे
गवाह होंगे बस आँखों के आंसू
माँ ओ की सुनी गोद बताएँगे
लेंगे संकल्प तब ही बेटियों को बचा पाएंगे ।
संजय वर्मा 'दृष्टि '
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