बिदाई में भीगती है आँखे
बेटी हुई तब ख़ुशी से झरते आँसू
साँझ के पंछी की तरह लोट आते है आंसू
जब भ्रूण-हत्या हो तब फिर से गिरते आंसू ।
माँ किस -किस से करे गुहार
पीडाये मन की उभर के आई
मुस्कराहट भी डरने लगी क्रूर लोगो से
कब लगेगा अंकुश ये माँ सोचती आई ।
बिटियाँ आ सकेगी दुनिया में
बिछाए रखे थे माँ ने पलक -पाँवड़े ये सोच कर
रो -रो कर बताती रही आँखे दुनिया को
क्या दुनिया में बेटियों का जनना है दुष्कर।
अगर ऐसा ही है तो बेटियों के बिना
इन्सान दुनिया में महज पत्थर बन रह जायेगा
कोई नहीं होगा रिश्तों की दुनिया में
आँखों में बिन नमी के इन्सान किस से नेह पायेगा ।
अंगना सूने किस को ये पीर बताएँगे
गवाह होंगे बस आँखों के आंसू
माँ ओ की सुनी गोद बताएँगे
लेंगे संकल्प तब ही बेटियों को बचा पाएंगे ।
संजय वर्मा 'दृष्टि '
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