Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भाती ना भाती

 

कानों को भाती
ध्वनियाँ
मंदिर की घंटी /अजान
कोयल की कूंक हो या
सुबह उठने के लिए
माँ की मीठी पुकार

 

कानों के लिए
वाणी की मिठासता बना जाती
मोहपाश सा बंधन
या उसी तरह भी लगती है
जेसे प्रेमी -युगल की मीठी बातों
से भरा हो प्यार का सम्मोहन

 

कानों को न भाती
तेज कर्कस कोलाहल भरी
आवाजें
ला देती कानों में बहरापन
तभी तो उनके कानों तक
समस्याओं के बोल पहुँच पाते
या फिर हो सकता है
दिए जाने वाले कोरे आश्वासन
हमारे कान सुन नहीं पाते हो

 

तब ऐसा लगता है
मानों विकास के पथ पर
लगा हो जंग
या प्रदुषण से कानों में
जमा हो गया हो मैल

 

 

 

संजय वर्मा "दृष्टि "

 

 

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