आज देखो शाम केसे सुहानी हो रही
यहाँ तो चमकते चाँद की रात भी दीवानी हो रही
कह न पा रही किसी से भी, दरख्तों कि सूखी पत्तियाँ
यहाँ तो चाँदनी के ,खिलने कि बात हो रही ।
मेहमां बने रातों के सब बाराती
यहाँ तो चाँद के ,धरती पर उतरने कि बात हो रही
चांदनी भी दूब संग नहाई है ओंस से
यहाँ तो पत्तियों के आँचल में , मोतियों की बात हो रही
क्यों फूल का नाजुक बदन खिल जाता रातों में
यहाँ तो चाँद की चाँदनी से इश्क की बात हो रही
भवरों की फूलों से पड़ गई फीकी मुहब्ब्त
यहाँ तो उजालों से ,बेवफा रातों की बात हो रही
संजय वर्मा "दृष्टि '
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