Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दीमक

 

 

पिता की किताबे
जिन्हें लिखी थी उन्होंने
रात रात भर जाग कर
कल्पना के भावो से
घर की जिम्मेदारी निभाने के साथ |
कहते है साहित्य की पूजा ऐसे ही होती है |
साहित्य का मोह भी होता है
जो लगता है तो अंत तक साथ
नहीं छोड़ता
इसलिए कहा भी गया है की
शब्द अमर है |
पिता का चश्मा /कलम/कुबड़ी
अब रखे है उनकी किताबों के संग
लगता है म्यूजियम /लायब्रेरी हो
यादों की |
माँ मेहमानों को बताती /पढ़ाती
पिता की लिखी किताबें
मे भी लिखना चाहता हू
बनना चाहता हू पिता की तरह
मगर ,भाग दोड़ की जिन्दगी मे फुर्सत कहा
मेरे ध्यान ना देने से ही
लगने लगी है पिता की किताबों पर दीमक |
साहित्य का आदर/सम्मान करूँगा
तब ही बन पाउँगा
पिता की तरह लेखक
पिता की किताबों के संग मेरी किताबों को
अब बचाना है दीमकों से मुझे |

 


संजय वर्मा "दर्ष्टि "

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ