इन्तजार
अधर बनी गुलाब पंखुरी
नयन बने कमल से
नयन भी करते इशारे प्रेम के
बालो से निकली लट से
छुप जाते नयन
माथे पे बिंदिया सजी
लगती प्रभात किरण
कंगन की खनक
पायल की रुनझुन
कानो में घोल देती मिश्री
कमर तक लहराते लटके बालों से
घटा भी शरमा जाए
हाथो में लगी मेहंदी खुशबू
हवाओं को महकाए
सज धज के
दरवाजे की ओट से
इंतजार में
आँखों से आँसू
इन्तजार टीस के बन जाते गवाह
इन्तजार होता सौतन की तरह
बस इतनी सी दुरी इन्तजार की
कर देती बेहाल
प्रेम रूठने का आवरण पहन
शब्दों पर लगा जाता कर्फ्यू
सूरज निकला फिर सांझ ढली
फिर वही इंतजार दरवाजे की ओट से
समय की पहचान
कर रहा कोई इंतजार घर आने का
तितलियाँ उडी खुशबू महकी
लबो पर खिल; उठी गुलाब की पंखुड़ी
समय ने प्रेम को परखा
बसन्त के मौसम में चहका प्यार |
संजय वर्मा "दृष्टि "
मनावर जिला धार मप्र
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