Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

इंतजार

 

विरहता की टीस से
उभर जाता है प्रेम ज्वार भाटे सा
चाहत ,चकोर सी
आकर्षण दे जाती चंद्रमा को

 

आँगन में चांदनी की छाया
जब बादलों की ओट से
कराती पल-पल इंतजार
लगता है चंद्रमा के रुख पे
डाल रखा हो बादलों ने नकाब

 

सोचती हूँ
अगर तुम आ जाओ
तो लिपट जाऊ बेल की तरह
और दिखा सकूँ
प्रेम के मील पत्थर बने
ताजमहल को

 

विरहता में
समझ सकों प्रेम का मतलब तो
इंतजार के मायनों में
तुम्हें चंद्रमा की चांदनी
और भी उजली नजर आने लगेगी
जब पास होंगे तुम मेरे

 



संजय वर्मा "दृष्टि "

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ