Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जब मोबाइल गुम होता

 
चिंतनीय मोड़ हो जाता दिमाग जब मोबाइल गुम होता

मोबाइल का सभी के पास होना अनिवार्य होगय|जीवन की आश्यकताओं में मोबाइल भी शामिल हो ही गया|पुराने समय में चिठ्ठी कबूतर,और धीरे धीरे डाक से भेजी जाने के बाद मोबाइल के चलन में आगे आईं |सुबह-शाम मोबाईल हाथों में|मोबाइल से विकिरण और ज्यादा उपयोग और निर्देशों के बावजूद लोग संग ही रखते है जैसे वो एक प्रकार से घर का सदस्य बन गया हो| जिसके पास मोबाइल है वो शख्स दूसरों के सामने उसकी खूबियों का बखान करने से नहीं चुकता ।मोबाइल फैशन का भी हिस्सा बन गया|कई लोग बाग़ है जो मोबाइल तो रखते मगर उसको सही ढंग से चलाना नहीं जानते।मोबाइल चलाने के सीखने के गुरु होते है|जो लोग बाग़ कही अटक जाते तो अपने उस्ताद के पास ले जाते है उस्ताद जो वो कुछ जानता है वो उन्हें बता देता है|उस्ताद भी अटक जाते है वो अगल बगल झाँक कर अधिक जानकर की तलाश में जाते है |जब मोबइल की चार्जिंग ख़त्म होती है तो मोबाइल धारक चिंता में मोड़ हो जाता है उसे लोग चिंतनीय मोड़ का नाम दे देते है|जब चार्जर की जुगाड़ जम जाता है तो ऐसा महसूस होता है किसी ने गर्मी के दिनों में ठंडा पानी पिलाया हो या तपती धूप में पेड़ की छाया नसीब होगई हो| 
पहले हाट बाजारों में ,आदि में जेब ही कटती थी|अब मोबाइल के लिए जेबकतरे भी आगे आए है |एक बार भीड़ भरे इलाके में एक महाशय की जेब में रखा मोबाइल जेब कतरोंबाज ने चुरा लिया | मोबाइल की रिपोर्ट दर्ज की गई | उसके लिए आवदेन पत्र के साथ मोबाइल ,पहचान ,मोबाइल से संबंधित कई दस्तावेज संलग्न करा|मोबाइल ऑफिस जाकर सीम  उसी नंबर की खरीदी गई |उसमे भी खर्चा लगा|सीम वाले ने बहत्तर घंटे में चालू होने की बात बताई |नए मोबाइल के लिए राशि की जुगाड़ उधार ले कर की |नए मोबाइल की पूजा की ,दोस्तों ने मिठाई मांगी | तब ऐसा लगा जैसे कोढ़ में खाज होगई हो |सीम चालू होने के इंतजार में दोस्त,रिश्तेदार,घर के सदस्य सभी परेशान  हो गए| मोबाइल चालू हुआ तो लगा जैसे कोई सुबह का भुला शाम को घर आगया हो|मोबाइल घूमने की व्यथा सुनाते -सुनाते खर्चा बढ़ता गया।व्यथा सुनने के लिए चाय पिलाओं तब ही कुछ  देर सुनने के लोग बाग़ रुकते है|और आश्वासन के साथ फ़िक्र न करों का मूलमंत्र भी दे जाते है |उधर घर में महाशय की पत्नी उनकीलू उतारती रही और चीजों को संभाल कर रखने की हिदायते भी हर समय देने लगी है|मोबाइल घूम नहीं हुआ होता तो महाशय कहाँ अपनी पत्नी के इशारों पर नाचने वाले थे ?मोबाइल घूम हो जाने की चिंता से अब महाशय बार- बार अपनी जेब को निहारते रहने लगे |नींद मे उठकर अपने सिरहाने पड़ा मोबाइल देखते | फ़िक्र का विकिरण वाकई ताकतवर होता है | 
मोबाइल चालू होने के बाद त्योहारों पर शुभकानाओं के साथ मोबाइल घुम हो जाने की व्यथा भी जोड़ देते है|लोग ये समझ नहीं पा रहे थे कि ये शख्स रो रहा है या हंस रहा है|मोबाइल से सेल्फी ली तो उसमे चेहरे पर मुस्कान कोसों दूर|क्या करें मोबाइल घूमने का दर्द दिल में दबा था तो मुस्कान आए भी तो कहाँ से | महाशय को एक उपाय सुझा उसने प्याऊ पर पानी का गिलास को जंजीर में बंधा देख कर जंजीर में मोबाइल को बांधने का उपाय सोचा |मगर सामने वाले के घर पर पालतू कुत्ते के गले जंजीर बंधी देखकर उसका प्लान फिर फेल हो गया|उनको आखिर में एक बात समझ में आई भाई मोबाइल नहीं घूमना चाहिए उससे उत्साह और खुशियां नदारद हो जाती है |दिमाग का दही और भिन्ना भोट  होना स्वाभाविक प्रक्रिया होकर आर्थिक स्थिति को डांवाडोल हो जाती है | 
संजय वर्मा 'दृष्टि'
125 बलिदानी भगतसिंग मार्ग 
मनावर जिला धार       

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ