Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जल की पाती

 

जल कहता है
इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता है मुझे
प्यास लगने पर तभी तो
खोजने लगता है मुझे ।

 

बादलों से छनकर मै
जब बरस जाता
सहेजना ना जानता
इंसान इसलिए तरस जाता ।

 

ये माहौल देख के
नदियाँ रुदन करने लगती
उनका पानी आँसुओं के रूप में
इंसानों की आँखों में भरने लगती ।

 

कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ
जल ही जीवन है
ये बातें इंसानो को कहाँ से
समझाओ ।

 

अब इंसानो करना
इतनी मेहरबानी
जल सेवा कर
बन जाना तुम दानी ।

 

 

 

संजय वर्मा "दृष्टि

 

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