जल का संग्रहण जीवन के लिए आवश्यक होता है
कुछ वर्ष पूर्व सांभर झील में हजारो पक्षियों का मर जाना चिंता का विषय था|ग्लोबल वार्मिग के बढ़ते प्रभाव के कारण कई पक्षियों की प्रजातियां धीरे -धीरे विलुप्तता कगार पर पहुँच रही जो कि चिंता का विषय है| इससे पर्यावरण भी प्रभावित होगा | इसके लिए वातावरण में परिवर्तन आवश्यक है | साथ ही सामाजिक स्तर से भी प्रयास किये जाना होंगे | वन्य जीव संरक्षक के उदेश्यों में पक्षियों के हीत में सुखद प्रयास करना होता है | अभयारण भी उनकी उचित देखभाल एवं उनके हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से जो भी निर्मित किये गए है | इनके संरक्षण व् संवर्धन के लिए भरसक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है ताकि विलुप्त होने वाली मध्यप्रदेश- छत्तीसगढ़ की पक्षियों की प्रजाति को बचाया जा सके | छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना अपनी बोली इंसानों के द्धारा बोली जाने बोली की हुबहु नक़ल उतारने में माहिर होती है | जबकि आमतौर पर तोते को इंसानो बोली की नकल करते देखा गया है | छत्तीसगढ़ में अब इनकी तादाद में बढ़ोतरी हुई है |पक्षी अपने मनपसंद और निर्धारित स्थानों पर आते है | पक्षियों के उडान भरने के अपने नियम होते है | कोई सीधी क़तार में तो कोई वी आकार में उडान भरते है | तो कोई झुंड बनाकर उड़ते है| इन पक्षियों में कुछ पक्षी पानी में तैरना,गोता लगाना जानते है | ये पंखों की मदद से अपने समूहों की पहचान करते है | पक्षियों की श्रवण शक्ति ,दॄष्टि तीव्र होती है | पक्षियों को वर्षा का बहुत ज्ञान होता है जैसे चिड़िया का धूल में स्नान धूल में लोट कर करना ,चीलों का वृताकार होकर आकाश की और ऊँचा उड़ना भी वर्षा का सूचक होता है | ऋतु -संबंधी ,वर्षा- संबंधी ,मौसम -संबंधी,दिशा -संबंधी का ज्ञान होता है | कुछ लोग पक्षियों की चाल -ढाल देखकर भी मौसम का अनुमान लगा लेते है | तीतर के पंख जैसी लहरदार बदली आकाश में छाई हो तो वर्षा अवश्य होगी | मादा पक्षी को खुश करने के लिए नर पक्षी उसके आगे नाचता,व् तरह -तरह की आवाजें निकालता है |सघन जंगल और जल हेतु बढ़ी परियोजनाओं की सुविधाएँ तो है | किन्तु विलुप्त प्रजातियों के पक्षियों के लिए जो उपाय किये जा रहे है उनकी चाल धीमी है |लुप्तप्राय प्रजातियों को नियंत्रित परिस्थितियों में संरक्षित रखने हेतु केवल नैसर्गिक स्थान और वातावरण विश्वसनीय समाधान है ।दुर्लभ और मरणोंन्मुख पक्षियों को सुरक्षित रखना एवं वंश वृद्धि की और ध्यान देने का लक्ष्य एवं कर्तव्य निश्चित करना होगा ।साथ ही संरक्षित स्थानों को दूषित वातावरण से मुक्त रखना होगा ।अवैध शिकार करने वालों पर कड़ी कार्रवाई भी सुनिश्चित करना होगी ।जिससे पक्षियों में वृद्धि दिखाई देकर लुप्तप्राय प्रजाति को बचाया जा सके एवं नई प्रजाति के पक्षियों की खोज एवं शोध को जारी रखा जाकर प्राकृतिक आपदा ,मौसम के पूर्व संकेत बताने वाले अन्य पक्षियों को भी बचाया जा सके ।रासायनिक खाद और कीटनाशकों का खेती में उपयोग कम कर जैविक खाद का उपयोग ज्यादा से ज्यादा मात्रा में किया जाना होगा इनके अलावा अवैध खनन ,अतिक्रमण -इनके हीत में जो भूमि अधिग्रहित की है उस पर अतिक्रमण ना होने पाए और इनका बसेरा बिना भय के रहकर उन्मुक्त उड़ान भर सके | अक्सर लोग जलस्त्रोतों ,अभ्यारणों में घूमने जाते है | वहां पर खाद्य सामग्री को खाने के पश्चात खाली पॉलीथिन को वहाँ फैक देते है |जबकि पॉलीथिन पर प्रतिबंध है |इससे पक्षियों को आहार के साथ प्लास्टिक भी भी उनके भीतर चले जाने की संभावना बनी रहती है |देखा जाए तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यूं तो कई वृहद ,मध्यम जल परियोजनाएं निर्मित एवं लघु तालाब भी निर्मित है | पक्षीयों का ज्यादा संख्या में एक साथ आना और बड़ी जल परियोजनाओं के तटों पर जल,,एवं आहार मिल जाता है |किंतु जब सूखा या अल्प वर्षा की स्थिति निर्मित हो तो अभ्यारणों में कृत्रिम जल संरचनाएं जगह- जगह ज्यादा संख्या में निर्मित किया जाना चाहिए | ताकि उनमे जल बाहर से लाकर भरकर गर्मी में पक्षियों और वन्य जीवों को सुलभता से प्राप्त हो सके | और प्यास के कारण उनको मरने से बचाया जा सके |क्योकि पृथ्वी रहने का जितना अधिकार इंसानों का है उतना अधिकार पशु -पक्षियों का भी है । देश भर में राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2022 मध्य प्रदेश को प्रथम स्थान मिला था।जल संसाधनों के संरक्षण एवं संवर्धन के प्रयास, पानी की नीति, सिंचाई के लिए माइक्रो इरीगेशन तकनीकी का प्रयोग,नई माइक्रो इरीगेशन परियोजनाओं का क्रियान्वयन, जल उपयोग की दक्षता,जल-संरचनाओं का पुनरुद्धार, सीवेज एवं औद्योगिक अपशिष्ट पानी को उपचारित कर पुनः उपयोग आदि क्षेत्रों में किए प्रयासों व उपलब्धियों के लिए मिला था। वर्ष 2025 में भी राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्राप्त हो इसके लिए कारणों को दूर करना होगा।जैसे वर्तमान में कई क्षेत्रों में प्राकृतिक जल संसाधन के रखरखाव के प्रति समुचित जिम्मेदारी का अभाव है.।नदियो व जल संरचनाओं के क्षरण व विलुप्तिकरण के भी प्रमुख कारण रहे है – नगरीय निकायों द्वारा सीवरेज (मल मूत्र) निकासी की समुचित व्यवस्था न करते हुए सीधे नदी, सहायक नदी, नालों, तालाबों मे इसे छोड़ देना, औधोगिक इकाइयों द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के वचनो का पालन न करते हुए अपशिष्ट को अनुपचारित ही इनमे प्रवाहित कर देना।उदगम से संगम तक नदी के पुनर्जीवन के लिए उपाय करना चाहिए। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की योजना बनावे ताकि गन्दा पानी स्वच्छ जल में न मिल पाए।वर्तमान में ऐसी ही प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता है ।ताकि सीधे तौर पर गंदा पानी पावन नदियों के नदियों में न मिल पाए ।नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए नागरिकों आगे आना चाहिए। नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने का दायित्व निभाने वाली संस्थाओं को पुरस्कृत कर उन्हें शासन से सहायता मुहैया होना चाहिए ताकि नदियों के शुद्धिकरण से सभी को शुद्ध जल का लाभ मिलकर जल संक्रमण से होने वाली बीमारियों से निजात मिल सके ।स्वच्छता का संदेश और जागरूकता लाना हर इंसान का कर्तव्य है |क्योंकि स्वच्छता से ही बीमारियों ,प्रदूषण को मुक्त रख कर स्वास्थ्य का लाभ हमें एक नई दिशा प्रदान कर पुनः राष्ट्रीय जल पुरस्कार आगामी वर्ष का हकदार बना सकता है
संजय वर्मा "दृष्टि "125 ,बलिदानी भगत सिंह मार्गमनावर जिला -धार (म.प्र )
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