होंठो से लगी शराब
होगी इतनी ख़राब
कभी सोचा ना था
इसकी लत मौत के मुहाने पर
ला खड़ा कर देगी
ऐसा जाना ना था
वाणी में शुद्द्ता को
ले जाएगी अपनों से कोसो दूर
ऐसा होना ना था
परिवार में सभी के
तनाव बिखराव भरे मन होंगे
ऐसा देखा ना था
आर्थिकता की कमी लेकर
फटी जेब से बाजारों में झांकेंगे
ऐसा माना ना था
निकलना चाहता है इंसान व्यवसनो से
जीना चाहता है सुनहरे पलो को
ऐसा जाना ना था
खोज रहा नशा मुक्ति का संकल्प
जो सामाजिक बुराई से दूर रख सके
ऐसा अब जीना चाहता हूँ
संजय वर्मा "दृष्टि "
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