धमाकों की गूंज से पीड़ित
शांति के कई दूत (कपोत )
अपने बच्चों को
छुपा रहे अपने पंखों से
सोच रहे
राष्ट्रीय पर्वो पर शांति के
प्रतिक के रूप में
क्यों उड़ाते है हमें
हमारा कहना कि
जब जमी पर अशांति थमे
तभी उड़ाना हमें
इंसानी हाथों से
लेकिन इंसान हमारी बोली
भला कहाँ समझ पाता
शांति का पाठ पढाने वालों
आतंक पहले
खत्म करना होगा
यदि ये हौंसला
इंसानों में नहीं है तो
बेवजह मत उडाओं हमें
हम खुद उड़ना जानते है
उड़कर बता देंगे दुनिया को
धरती पर
हम ही है असली संदेश वाहक
शांति के
धरती पर
आतंकी इंसानों को
शांति का पाठ पढने का
हौंसला लेकर आए है
संजय वर्मा "दृष्टि "
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY