जब मे छोटा था तो माँ से एक सवाल गर्मी के मोसम मे पूछा करता था | माँ.. गोरय्या इतनी उचे छज्जे मे रह रहे उनकी छोटे -छोटे बच्चों को इतनी भीषण गर्मी मे पानी केसे पिलाती होगी? क्या उन्हे प्यास नहीं लगती होगी| आप हमे तो जरा-जरा सी देर मे प्यास लगाने पर पानी पिला देती हो |
माँ ने कहा- हर माँ को छोटे बच्चों का ख्याल रखना होता है |तू बड़ा हो जायेगा और मे बूढी हो जाउंगी तो रखेगा ना मेरा ख्याल | हाँ ..माँ मे रखूगा |
समय बीतने पर माँ ने सिलाई कर कर के खाने मे खिचड़ी तो कभी पोहे बनाकर पेट की भूख को तृप्त कर देती |माँ से पूछने पर माँ आप ने खाना खा लिया की नहीं |माँ भले ही भूखी हो वो झूंठ -मूंठ कह देती- हाँ खा लिया |वो मेरी तृप्ति की डकार से खुश हो जाती | मुझे नजर ना लगे इसलिये अपनी आखों का काजल उतार कर मेरे माथे पर टिका लगा देती |माँ की गोद मे सर रख कर सोता और माँ का कहानी -किस्से सुनाकर नींद लाना रोज की परम्परा सी हो |माँ ने गरीबी का अहसास नहीं होने दिया |बल्कि मेहनत का होसला मेरे मे भी भरती गई |
आज मे बडे पद पर नोकरी कर रहा हूँ |आज माँ के लिये हर सुख -सुविधा विद्दमान है और जब भी मे बड़ा दिखने की होड़ माँ से बड़ी -बड़ी बातें करता हूँ तो माँ मुस्कुरा देती है |जब किसी चीज मे कुछ कमी होती है तो वयर्थ मे ही चिक चिक करने लगता हूँ |शायद दिखावे के सूरज को पकडने मेरी ठाटदारी के जेसे पंख जलने लगे हो और मे पकड़ नहीं पाता इसलिये मन मे चिडचिडापन उत्पन्न हो जाता है |माँ कहती है की गरीबी मे ही कितना सुकून रहता था |गरीब की किसी गरीब से प्रतिस्पर्धा नहीं होती थी | दायरे सिमित थे किन्तु आकांक्षा जीवित थी वो भी माँ के मेहनत के फल के आधार पर |आज माँ की छत्र -छायामे सुख शांति पाता हूँ शायद ये ही मेरी माँ के प्रति पूजा भी है जो कठिन परीस्थितियों मे समय की पहचान एवम होसलो से जीना सिखाती है जेसे गोरैया अपने बच्चों को उड़ना सिखाती है| अब अच्छी तरह समझ गया हूँ की माँ का स्नेह बच्चों के प्रति क्या होता है |
संजय वर्मा "दर्ष्टि "
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