माँ में तुम्हारे लिए दौडूंगा
जीवन भर आप मेरे लिए दौड़ती रही
कभी माँ ने यह नहीं दिखाया कि
में थकी हूँ
माँ ने दौड़ कर जीवन की सच्चाइयों
का आईना दिखाया
सच्चाई की राह पर
चलना सिखाया
अपने आँचल से मुझे
पंखा झलाया
खुद भूखी रह कर
मेरी तृप्ति की डकार
खुद को संतुष्ट पाया
माँ आप ने मुझे अँगुली
पकड़कर चलना /लिखना सिखाया
और बना दिया बड़ा आदमी
में खुद हैरान हूँ
में सोचता हूँ
मेरे बड़ा बनने पर मेरी माँ का हाथ और
संग सदा उनका आशीर्वाद है
यही तो सच्चाई का राज है
लोग देख रहे है खुली आँखों से
माँ के सपनों का सच
जो उन्होंने मेहनत/भाग दौड़ से पूरा किया
माँ हो चली बूढ़ी
अब उससे दौड़ा नहीं जाता किंतु
मेरे लिए अब भी दौड़ने की इच्छा है मन में
माँ अब में आप के लिए दौडूंगा
ता उम्र तक दौडूंगा
दुनिया को ये दिखा संकू
माँ से बढ़ कर दुनिया में
कोई नहीं है
संजय वर्मा"दृष्टि"
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