Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा कसूर क्या है ?

 

 


अक्सर कई बार ऐसा हो जाता है की सामने वाला क्या सोच रहा है या फिर हम उसी अंदाज मे उसे देख रहे है मगर उसके बारे मे सोच नहीं रहे है |यानि ध्यान कही और है | ऐसे मे सामने वाला कोई नई बात सोच लेता है | गाँव मे रिवाज होता है की मेहमान यदि किसी के भी हो अपने लगते है |गाँव मे उन्हें अपने घर भी बुलाते है फिर मेजवान को भी उनके परिचय हेतु बुलवा लेते है |
एक वाक्या याद आता है कि- सामने वाले के यंहा गर्मी की छुट्टियों मे मेहमान आये ,बुरा न लगे इसलिए सामने वाले अंकल को भी गर्मी के मोसम मे ठंडा पिलाने हेतु पप्पू को दोड़ा दिया कह कि-"जा जल्दी से नान्या अंकल को बुला ला "| आमंत्रण कि खबर पाकर वो इतना सम्मानित हुए जितना कि कवि या शायर कविता/गजल पर दाद बतोर तालियाँ और वाहवाही के सम्मान से नवाजा गया हो , मगर कवि सम्मेलन.काव्य गोष्ठियों का चलन इलेक्ट्रानिक युग मे जेसे कम होता जा रहा है | लोग है कि हरदम टी. वी से ही चिपके रहते है |
बात कर रहे थे ठंडा पीने कि तो भाई जेसे ही नान्या अंकल को मेहमानों के सामने भाभीजी ने निम्बू का शरबत दिया शरबत का गिलास होठों से लगाया तो नान्या अंकल कि आँख दब गई |कसूर आँख का नहीं था सोच शायद महंगाई के मारे शक्कर के भाव बढ गए हो इसलिए शक्कर ही कम डाली हो | दूसरा घूंट भरा तो फिर आँख दब गई |तब सभी ने देखा कि और कहा कि- शर्मो हया की भी हद होती हैं,हमारे घर मे ही बैठकर ही ये छिछोरी हरकते आँख मारने की कर रहे हो | नान्या अंकल ने कहा- भाई शरबत बहुत ही खट्टा है, पीने से मेरे दांतों को बहुत तकलीफ़ होती है | खटाई ज्यादा होने पर तो हर किसी की आँख दब ही जाती है ना | मेरी नजर तो पहले ही कमजोर है | जरा इमली को ही लिजिये, इमली का नाम सुनने पर या चूसने पर सामने वाले के मुह मे भी पानी आ जाता है और जम्हाई लोगे तो तो सामने वाला भी मुह फाड़ने लग जाता है |कई लोग मीटिंगों मे आप को सोते या जम्हाई लेते मिल ही जायेंगे | ऐसा शरीर मे क्यों होता है ये मे नहीं जानता जो आप सोच रहे हो और ये भी नहीं जानता की मेरा कसूर क्या है ?
कई सालो बाद वही मेहमान फिर गाँव मे आये तो उन्होंने नान्या अंकल को देखा जो की ज्यादा बुड़े हो गए थे लेकिन अपने विचारो पर थे अडिंग |उनकी नजरे भी कमजोर हो गई थी किन्तु सामने वाले मेहमानों ने उन्हें पहचान ही लिया| वे एक दुसरे के कानो मे खुसर-पुसर कर कहने लगे यही तो थे आँख मारने वाले अंकल| उन्होंने सोचा की शायद उस समय हमसे ही कोई समझने की भूल हो गई हो क्षमा मांगने का यही सबसे अच्छा मोका है |
सभी ने नमस्कार कर पूछा की अंकल हमें पहचाना? नानिया अंकल लकड़ी के सहारे चलकर बुडी आँखों से नजदीक आकार कहा- बेटा मुझे दूर से कोई दिखाई नहीं देता |वे बहुत पास आकार देखने लगे और कहा कि -बेटा मुझे दूर से कोई दिखाई नहीं देता | इतने मे फिर से आँख दब गई अब कसूर खटाई का नहीं था बल्कि हवा के झोंकों का था जो धुल भरी आंधी के साथ तिनके को धुल के कणो के साथ उड़कर लाया था जो उड़ कर नान्या अंकल की आँखों मे सीधे जा घुसे थे | आखिर भाभीजी ने बोल ही दिया की -"बुड़े हो गए हो मगर हरकतों की आदत वो ही की वो ही है "|मोसम के मिजाज जो अक्सर गर्मियों के दिनों मे धुल भरी आंधी चलती है को वो समझ नहीं पाए | नान्या अंकल भी सामने वाले को समझा नहीं पाए और ना ही मेहमानों ने सही बात को ठीक तरीके से समझने की कोशिश की | नान्या अंकल मन ही मन सोच रहे थे की आखिर मेरा क्या कसूर है ? जो मे कह रहा हु ये उसे समझ नहीं पा रहे है | उधर रेडियो पर मोसम की भविष्यवाणी हो रही थी की मोसम आज ख़राब रहेगा मगर ये समझ नहीं रहे थे और रेडियो गाने भी बजा रहा था कि- आँख मारे ये लड़का आँख मारे ... मगर फिर भी नहीं समझ पा रहे थे की क्या रेडियो भी इन पर कटाक्ष कर सकता है अब नान्या अंकल चुप थेऔर मेहमान असमझ वे अब सोचने लगे कि -अब कसूर किसका है ?

 


संजय वर्मा "दृष्टी "

 

 

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