गाँवों में नीदं मीठी होती
बौराये आमों तले
कोयल की कूक भी मीठी होती
नयनों से केसे कहे ...
पत्तों से झाँकती सूरज की किरणें
तपीश को ठंडा कर देती
खेत से पुकारती आवाजें
सुबह की बयार को मीठा कर देती
नयनों से केसे कहे। ..........
गोरी के पनघट पे जाने से
पायल कानों में मिठास घोल देती
बैलो की घंटियाँ बातें मीठी कहती
लगता नदिया मिठासो से इठलाती बहती
नयनों से केसे कहे ……
संजय वर्मा "दृष्टि "
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