Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मोबाईल

 

जिन्दगी अब तो हमारी मोबाईल हो गई
भागदोड मे तनिक सुस्तालू सोचता हूँ मगर
रिंगटोनों से अब तो रातें भी हेरान हो गई |

 

बढती महंगाई मे बेलेंस देखना आदत हो गई
रिसीव काल हो तो सब ठीक है मगर
डायल हो तो दिल से जुबां की बगावत हो गई |

 

मिस्काल मारने की कला तो जेसे प्रथा हो गई
पकड़म -पाटी खेल कहे शब्दों का इसे हम मगर
लगता जेसे शब्दों की प्रीत हमसे खता हो गई |

 

पहले -आप पहले -आप की अदा लखनवी हो गई
यदि पहले उसने उठा लिया तो ठीक मगर
मेरे पहले उठाने पर माथे की लकीरे मतलबी हो गई |

 

मिस्काल से झूठ बोलना तो आदत सी हो गई
बढती महंगाई का दोष अब किसे दे मगर
हमारी आवाजे भी अब तो उधार हो गई |

 

दिए जाने वाले कोरे आश्वासनों की भरमार हो गई
अब रहा भी तो नहीं जाता है मोबाईल के बिना
गुहार करते रहने की तो जेसे जिंदगी बेशुमार हो गई |

 

मोबाईल ग़ुम हो जाने से जिन्दगी परेशान हो गई
हरेक का पता किस -किस से कब तक पूछें मगर
बिना नम्बरों के तो जेसे जिन्दगी हैरान हो गई है |

 

 



*संजय वर्मा "दृष्टी "

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