Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रकृति की पूजा

 

 

गरजती -चमकती
बिजलियों से अब डर नहीं लगता
अपने पसीने से सींचे हुए
खेतोँ में लगे अंकुरों को देखकर
लगने लगा
हमने जीत ली है
मान -मन्नतो के आधार पर
बादलों से जंग

 

 

वृक्ष कब से खीचते रहे
बादलों को
अब पूरी हुई उनकी मुरादें
पहाड़ो पर लगे वृक्ष
ठंडी हवाओं के संग
देने लगे है
बादलो को दुआएँ

 

 

पानी की फुहारों से
सज गई धरती की
हरी -भरी थाली
और आकाश में सजा इन्द्रधनुष
उतर आया हो
धरती पर
बन के थाली पोष

 

 

खुशहाली से चहुँओर
हरी -भरी थाली के कुछ अंश
नैवेध्य के रूप में ईश्वर को
समर्पित कर देते है किसान
श्रद्धा के रूप में
शायद ,ये प्रकृति की पूजा का
फल है

 

 

 

संजय वर्मा "दृष्टि "

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