मैने की आईने से दोस्ती
संवारता खुद को जाने क्यों
लगता मुझे प्यार हो गया
नयन कह जाते बिन बोले
नींद जाने कौन उड़ा गया
निहारते रहते सूनी राहों को
शब्दों को गढ़ता बन शिल्पकार
दिल के अंदर प्रेम के ढाई अक्षर
सहंम सी जाती अंगुलियां हाथों की
अंगुलियां बनी मोबाइल की दीवानी
शब्दों को जाने क्यों लगता कर्फ्यू
अटक जाते शब्द उन तक पहुँचने में
नजदीकियां धड़कन की चाल बढ़ा देती
जैसे फूलों सुगंध हवा में समां सी जाती
लगने लगता उनको मुझसे प्यार होगया
संजय वर्मा 'दृष्टी '
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