लहराती जुल्फों में
ढँक जाती तुम्हारे माथे की
बिंदीया
लगता हो जेसे बादलों ने
ढांक रखा हो चाँद को ।
कलाईयों में सजी चूडियाँ
अँगुलियों में अँगूठी के नग से
निकली चमक
पड़ती है मेरी आँखों में
जब तुम हाथों में सजे
कंगन को घुमाती हो ।
सुर्ख लब
कजरारी आँखों में लगे
काजल से
तुम जब मेरी और देखो
तब तुम्हे केनवास पर
उतरना चाहूँगा ।
हाथों में रची मेहंदी
रंगीन कपड़ों में लिपटे
चंदन से तन को देखता
सोचता हूँ
जितने रंग भरे तुम्हारी
खूबसूरत सी काया में
गिनता हूँ
इन रंगों को दूर से ।
अपने केनवास पर उतारना
चाहता हूँ तस्वीर
जब तुम सामने हो मेरे
पास हो मेरे ।
दूर से अधुरा पाता रंगों को
शायद उसमे प्रेम का रंग
समाहित ना हो ।
संजय वर्मा "दृष्टि "
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