प्रसव वेदना का दर्द
झेल चुकी माँ
खुशियों के संग पाती
नन्हें शिशु को ।
होठों से शीश चूमती
तभी कल्पनाएँ भी जन्म लेने लगती
उसके बड़े हो जाने की ।
नजर न लगे
अपनी आँखों का काजल
अंगुली से निकाल
लगा देती है टीका
बीमारियों के ठीके के साथ ।
हर रोज खबरों में बलात्कार की खबरे
पढ़कर आँखे शर्म से झुक जाने लगी
आँखों में खून खोलने लगा है
अंकुश कड़े कानून का हो,
इन भ्रूण हत्यारों /बलात्कारियो को
सजा दिलाना जरुरी है
क्योंकि ,कई माँ
स्नेहमयी /ममतामयी निगाहों से
आज भी खोज रही अपनी बच्चियों को ।
किंतु वे बेगुनाह
माँ के दूध का कर्ज
कैसे अदा करेंगे ?
जी दरिदों की वजह से पीड़ित होकर
बलात्कार रोकने की गुहार कर रहे
और ,कुछ इस दुनिया में
भ्रूण -हत्या की वजह से नहीं है ।
संजय वर्मा "दृष्टि "
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