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सुकून की जिंदगी की चाहत

 

Sanjay Verma 


Sat, Mar 29, 12:56 PM (23 hours ago)




सुकून की जिंदगी की चाहत

रिश्तों को क्या हो गया इस इलेक्ट्रॉनिक युग में सब मोबाइल, टीवी,कंप्यूटर में  व्यस्त ऐसे हो गए कि त्योहारों पर घर मे काम करने की गति धीमी हो चली है।त्योहार पर लोग को नाश्ते पर बुलाया जाता था या किसी के मेहमान आते तो गली-"मोहल्ले के नाते उन्हें बुलाकर परिचय दे लेकर एक अच्छे व्यक्तित्व संदेश सम्मान के साथ प्राप्त होता था।किंतु अब पहचान वालो को नाश्ते पर बुलाने की प्रथा खत्म हो चुकी है।इसका मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सम्मोहन में बंधना और एकाकीपन की रहने की चाहत।यानि को आकर आपके कार्य मे व्यवधान ना डाले।इससे अपनापन खत्म होने की कगार पर जा पहुंचा साथ ही नई पीढ़ी सम्मान और रिश्तों की परिभाषा को विस्मृत की और बढ़ने लगी।गांव में पेड़ो के नीचे बैठ कर बतियाने,बगीचों ने जाकर बैठने, धार्मिक स्थानों पर जाना कम सा हो गया है।ये इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बच्चों से लेकर बुजुर्गों को इसकी लत  का शिकार बनाता जा रहा है।जिसके ज्यादा उपयोग से स्वास्थ्य पर ओर अपनेपन पर अच्छा खासा प्रभाव देख रहे है।इनका उपयोग होना चाहिए किंतु सीमित समय के लिए।तभी हम खोए हुए पल को सुकून के साथ। वापस पा सकते है।
संजय वर्मा "दृष्टि"
125,बलिदानी भगत सिंह मार्ग
मनावर जिला धार मप्र

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