मकड़ियों के जालो में
बैठी भूखी मकड़ियां
इंतजार करती कीट पतंगों का
कब फंसेंगे ये जाल में
ठग लोग भी बनाते
ठगने का जाल
कोई न कोई फंसेगा
झूठ फरेबों के जाल में
मकड़ियां सूने घरों में
ज्यादा बनाती जाले
ठग भी कुछ ऐसा ही करते
जहाँ हो सूना सड़क हो या घर
मकड़ियों का किसी से वास्ता नहीं होता
उन्हें अपने काम से मतलब
ठगो से बुद्धिजीवी इंसान
कैसे ठग जाते ?
और फंस जाते कीट पतंगों की तरह
उनके रचे हुए जाल में
दीपावली पर सफाई में महिलाये
कर देती मकड़ियों के जाले साफ़
इंतजार है महिलाएं
कब करेगी इन ठगो को साफ़
क्योंकि कुछ मर्दो को
मेहनत करना नहीं आता
मेहनत की रोटी क्या होती
उन्हें मालूम नहीं
जबकि ठगी रोकने का काम
बुद्धिजीवी मर्दो का है
ठगी पर अंकुश नहीं लगा पाए जब मर्द
महिलाओं पर ही अब
विश्वास बचा है शेष
उनके पास सशक्तिकरण
की शक्ति जो है
संजय वर्मा "दृष्टी "
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