Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सुकून

 

दिखावे की होड़ भी
लगती मृगतृष्णा सी
जब पैसों के पीछे
भागता है इंसान

 

समय और पैसा
जेसे रिश्तों से ज्यादा
अहमियत रखता हो
तभी दोड़ -भाग के खेल में
हो जाते है रिश्ते कमजोर

 

और तो और
दिखावे की होड़ में
उड़ने पर
जल जाते है पंख उम्र के

 

शायद, इसी दोड़ में
अपनों से रिश्ते
पीछे छूट जाते है
जब रिश्तों का अपनत्व
हिचकियों से याद दिलाता है

 

तब समझ में आती
वक्त की नजाकत
जो कभी थी
रिश्तों से सुकून भरी

 

 

 

संजय वर्मा "दृष्टी "

 

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