Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ठंडी हवा

 
ठंडी हवा  

ठंडी हवा 
मचलकर न चल 
आबो हवा
कही चुरा न ले जिया।

बैचेन तकती  निगाहे  
मौसम में देखती दरख्तों को 
सोचता मन कह उठता 
बहारे भी जवान होती
वे सजती संवरती 
दुल्हन की तरह। 

झड़ते पत्ते गिर कर 
आ जाते मेरे पास 
प्रेम पत्र की तरह 
प्रेम गीत गुनगुनाने चले।

धड़कने बढ़ जाती 
प्रेमियों की जाने क्यों 
जब जब बहारे आती /जाती।

संजय वर्मा 'दृष्टि '
125 बलिदानी भगत सिंह मार्ग 
मनावर (धार )मप्र

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