ठंडी हवा
ठंडी हवा
मचलकर न चल
आबो हवा
कही चुरा न ले जिया।
बैचेन तकती निगाहे
मौसम में देखती दरख्तों को
सोचता मन कह उठता
बहारे भी जवान होती
वे सजती संवरती
दुल्हन की तरह।
झड़ते पत्ते गिर कर
आ जाते मेरे पास
प्रेम पत्र की तरह
प्रेम गीत गुनगुनाने चले।
धड़कने बढ़ जाती
प्रेमियों की जाने क्यों
जब जब बहारे आती /जाती।
संजय वर्मा 'दृष्टि '
125 बलिदानी भगत सिंह मार्ग
मनावर (धार )मप्र
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