Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

विरहता

 

विरहता के समय
आती है यादें
रुलाती है यादें
पुकारती है यादें
ढूंढती है नजरे
उन पलों को जो गुजर चुके
सर्द हवाओ के बादलों की तरह
खिले फूलों की खुशबुओं से
पता पूछती है तितलियाँ तेरा
रहकर उपवन को महकाती थी कभी
जब फूल न खिलते

 

उदास तितलियाँ भी है
जिन्हे बहारों की विरहता
सता रही
एहसास करा रही
कैसी टीस उठती है मन में
जब हो अकेलापन
बहारें न हो

 

विरहता में आँखों
का काजल बहने लगता
तकती निगाहें ढूंढती
आहटों को जो मन के दरवाजे पर
देती थी कभी हिचकियों से दस्तक
जब याद आती
विरहता में

 

 

 

संजय वर्मा "दॄष्टि "

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ